यादों की दुनिया
यादों की दुनिया
चलते चले साथ में उसके
पता न था, यूं चला जायेगा
थामे थे, हौले से हाथ मैने
कब सोचा, यूं बिछड़ जायेगा
देखीं दुनिया अपनी आंखों से
रंग भर गए उसकी बातों से
गीत गुनगुनाए थे, अपने अधरों से
संगीत घोल दिया उसने चुपके से
खिली बगिया में, कली, जूही की बन कर
बस गया वो, मुझ में खुशबू बन कर
बरसी बारिश में, मैं बूंद नीर की बन कर
समा लिया मुझको आगोश में
उसने एक सीपी बन कर
हर दिन की कितनी यादें हैं
उनमें भी सुबह, शाम और रातें हैं
बता नहीं सकती दूजों को
लब से ज्यादा नयनों की बातें हैं
जैसा तुम कहते थे
वैसे ही तुम्हे याद कर, मुस्काती हूं
पलकों के नीचे आंखों में
बूंद नीर की बन जाती हूं
सुबह पावं धरा पे धरती हूं
खुद में साहस भरती हूं
थोड़ा भी डगमग होने पर
खुद का सहारा बनती हूं
p>दर्पण के आगे सजती हूं
बिंदिया भी धारण करती हूं
जो लाए थे तुम, लहंगा मेरा
उसमें अब भी, सुंदर लगती हूं
जाती हूं कुरुक्षेत्र रोज
जैसे तुम नित जाते थे
विश्वास करो तुम मेरा
युद्ध बराबर लड़ती हूं
तुम मुझको, कोमल कहते थे
अब कठोर मैं हो जाऊंगी
संघर्ष, बराबर करते करते
तुम जैसी ही बन जाऊंगी
हां याद मुझे,
तुम कहते थे
साथ रहने पर जिंदगी अति सुंदर होगी
साथ न होने पर भी यादों में बाते होंगी
हां, आज मैं सोचती हूं,
थोड़ा धीरज धरती हूं
तुम जग से जा कर भी
मेरे अंतर्मन में रहते हो
यादों की दुनियां में
तुम बिल्कुल वैसे ही दिखते हो
यादों की इस दुनियां में
हर दिन फिर से आयेगा
फिर क्यों न मैं मुस्काऊंगी
यादों का उत्सव मैं तेरे संग मनाऊंगी
जिंदगी तो मैं, जी जाऊंगी
पर तुमको न भूल पाऊंगी।