उगता हुआ सूरज
उगता हुआ सूरज
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बिखरा किरणें आशा की
निकलता पल-पल जलने को!
ढ़लने को!
स्वयं में नित्याकार
पाता उजास यह संसार
होता जग का उद्धार
करता रोशन भू का रज-रज।
उगता हुआ सूरज।।
शशि, नक्षत्र, उल्काएं ग्रह
सब कर जाते किनारा।
रहता नभ में अकेला
स्वर्ण-धेनुओं का ले सहारा।
हंसता खूब पंछियों को देख
बच्चों के करतब को देख
अठखेली करता स्वयं बच्चा बन
छुप जाता घन-पर्दे में,
लुका-छिपी करता हुआ
देता है सबको अचरज।
उगता हुआ सूरज।।
