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Rajdip dineshbhai

Abstract Children Stories Inspirational

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Rajdip dineshbhai

Abstract Children Stories Inspirational

उल्फत के अब वो ज़माने...

उल्फत के अब वो ज़माने...

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उल्फत के अब वो ज़माने नहीं आते 

कृष्ण राधा जैसे दीवाने नहीं आते

तन्हाई में जी रहा हूँ अब 

क्युकी पास बैठने लोग नहीं आते 


        उल्फत के अब वो ज़माने...


बचपन के वो अब खेल नहीं आते 

बच्चे अब फोन से बाज नहीं आते 

दादी सुनाने को कहानी कहती है 

पर बच्चे अब बैठने पास नहीं आते 


           उल्फत के अब वो ज़माने...


बैताल जी अब कहानी सुनाने नहीं आते 

कबूतर अब खत ले के जाने वाले नहीं आते 

तितली भी उड़कर थक चुकी है 

अब बगीचे में फूल खुशबूदार नहीं आते 


             उल्फत के अब वो ज़माने...


मीराबाई के जैसे लिखने पद नहीं आते 

शबरी जैसे बेर जूठे चखाने नहीं आते 

आ जाए राम भी घर को अपने 

पर शबरी जैसे इंतजार करने नहीं आते 


             उल्फत के अब वो ज़माने...


परिंदे अब शाम गुजारने नहीं आते 

अखबार में अब सच्चे किस्से नहीं आते 

परिंदे कहाँ रहते है इन शजरो पर 

सुकून के पल अब इन शजरो पर नहीं आते


           उल्फत के अब वो ज़माने...


मिट्टी के वो खिलौने बच्चों के पास नहीं आते 

शहर गुजारने लोग वापस गांव नहीं आते 

मंजिल मिलती नहीं पर 

वो सिकंदर जैसे मुसाफिर नहीं आते 


          उल्फत के अब वो ज़माने...



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