सत्यव्रत-तुम्हारी यादों में...
सत्यव्रत-तुम्हारी यादों में...
सत्यव्रत, आज तुम
हमारे बीच सशरीर नहीं हो, मगर तुम
हमारे दिल की धड़कनों में
समाए हुए हो ...
तुम इस दुनिया से
असमय रुखसत तो हो गए, मगर तुम्हारी अच्छाइयों की गुंज
आज भी होती हैं
इन बहती हवाओं में ...!!!
तुम एक सहज-सरल छात्र थे ...
विवेकानंद केंद्र विद्यालय, धेमाजी के ...
एक दोपहर छुट्टी के बाद तुम जब
अपनी बाइसाईकिल पे सवार
अपने घर को निकल पड़े थे ...
मगर दूर्भाग्यवश अपने
घर के ठीक सामने
रास्ता पार करते वक्त
एक तेज रफ्तार वाली मोटरगाड़ी की
चपेट में आकर ...
और क्या दर्द बयां करें, सत्यव्रत,
तुम अपने परिवारजनों की
पूरी कोशिश के बाद भी
इस धरती पे रह न पाए ...!!!
आज तुम नहीं हो, मगर
तुम्हारी अबोध मुस्कान को
हम सब तरसते हैं ...!<
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आज तुम्हारे सहपाठी
कक्षा दसवीं में
पहुंच चुके हैं ...
काश ...!!! तुम भी हमारे बीच
सशरीर विराजमान होते ,
तो आज बात ही
कुछ और होती ...
मगर उस ऊपरवाले की
मर्ज़ी के आगे
किसकी चली है ...!!!
सत्यव्रत, तुमको तो
उस ऊपरवाले ने
हमसे छीन लिया ...
बहुत दर्द-ओ-ग़म दिया ...
हम सबको रुलाते-रुलाते
आज हमारे आँसुओं तक पे
बंदिशें लगा दीं ...
फिर भी एक फरियाद
है ऊपरवाले से --
"कभी किसी की नयन मणि को
ऐसे न छीने ऊपरवाला ...
उसे अपनी ज़िंदगी
पूरी जीने का अधिकार दे ...!"
क्योंकि जिसका अपना कोई
इस दुनिया से रुखसत हो जाता है,
वहीं अपना दिल का दर्द
बयां कर सकता है ...।
हाँ, सत्यव्रत, तुमको न भूल पाएंगे ...!