अब केवल याद है माँ..!
अब केवल याद है माँ..!
जैसे बिना बोले तू समझ जाती है
मेरे हर श्वास हर स्पर्श को पहचानती है
मिथ्या रुदन पर तू विचलित होती,
पर झूठी मुस्कान भी झट से ताड़ जाती है।
माँ मेरी हर ख़ुशी हर ग़म की साक्षी होती,
वो दिन क्या सुहाने होते कोई फिक्र नहीं होती,
थोड़ा माँ का गुस्सा बेशुमार लाड़ दुलार,
अब एक टिस सी है बस जो माँ की यादें बन चुभती हैं।
