गौरेया
गौरेया
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भोर भये उठ सबसे पहले ,
नव किरण संग तुम आती हो।
चीं चीं चूं चूं मधुर स्वरों से ,
हर घर को चहकाती हो ।।
कभी फुदकती हो आँगन में ,
कभी गगन में उड़ जाती हो ।
कभी खेत में दानें चुगती ,
कभी चमन में इठलाती हो ।।
तिनके - तिनके जोड़ - जोड़ कर ,
क्या ! सुंदर नीड़ बनाती हो ।
जो भी मिले प्रेम से खाती ,
संतोष का पाठ पढ़ाती हो ।।
खूब नहाकर शुष्क धूल में ,
देती हो बारिश की पाती।
मंगल आशा बन जीवन की ,
सारे कष्टों को अपनाती ।।
सुन री ! मेरी कृषक लाड़ली ,
जगत जाने तुमको गौरेया ।
नाम भले हो कितने तेरे ,
तू भारत की सोन चिरैया।।
