चांद
चांद
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चांद तुम्हारे नखरे अनोखे
कितने तुम इतराते हो।
सोलह कलाओं से खिलते,
हरदम घटते बढ़ते रहते हो।
पूनम को अमृत बरसाते,
और अमावस को छुप जाते हो।
चांद तुम्हारे नखरे अनोखे...
असीम उपमाओं से तुम्हें नवाजा,
आसमां पर अपने तुम्हें बिठाया।
निशा की गोद में बैठे तुम,
हरदम अठखेलियां करते रहते हो।
चांद तुम्हारे नखरे अनोखे...
रात जाग तुमसे बातें की,
नींद फिर भी नहीं आई,
तुम भी कहां कम हो,
बादलों के पीछे छुप तड़पाते हो।
चांद तुम्हारे नखरे अनोखे...
जगमग सितारों की ओढ़ चुनरिया,
अपनी शान दिखाते हो।
सूरज से रोशनी ले उधार,
आशिकों पर रोब दिखलाते हो।
चांद तुम्हारे नखरे अनोखे ...
