आदर्शों की पुनर्स्थापन
आदर्शों की पुनर्स्थापन
रघुकुल का सम्मान बढ़ाकर, धर्म ध्वजा जग में फहराकर.....
राम तुम्हारे वन प्रवास का, अर्थ हुआ पूरा ।।
चहक रही हैं सभी दिशाएँ, झूम रहा अम्बर ।
चरण पखार रहा आगे बढ़, लहराता सागर ।
मधुर स्वरों में आज गा रहे, गाथा सुधियों की ।
ऋष्यमूक पर्वत के सारे, मिल-जुल कर पत्थर ।
अहा ! अयोध्या के घर-घर में, भारत भू के हृदय नगर में..
दीपमालिका के उजास का, अर्थ हुआ पूरा..
राम तुम्हारे..........।।
मेघनाद कर रहा स्वयं में, अनुभव परिवर्तन ।
बालि, दशानन, कुम्भकरण का, बदला अन्तर्मन ।
धन्य हुआ इस कलयुग में, ग्रन्थों से पुनः निकल..
बजरंगी, सुग्रीव, विभीषण का, जीवन दर्शन।
रामचरित मानस का वाचन, आदर्शों की पुनर्स्थापन।
तुलसी के इस सद्प्रयास का, अर्थ हुआ पूरा..
राम तुम्हारे........।।
सत्य, न्याय, सद्भाव जगा है, हर घर-आँगन में ।
फिर सुचिता के पुष्प खिले हैं, जन-गण के मन में ।
कहीं विषमता नहीं रहेगी, सब समान होंगे ,
समरसता के भाव उगे हैं, फिर भव-कानन में ।
इस जगती के व्याप्त कणों में, हिम शिखरों में, तुच्छ तृणों में
कलयुग में भी प्रभु निवास का, अर्थ हुआ पूरा....
राम तुम्हारे..........।।
