फकीर मन
फकीर मन
छोड़कर सड़कें सलीकों की
पगडंडी सा ऊबड़-खाबड़
हो जाना चाहता हूँ।
अपार्टमेंट, कॉम्प्लेक्स और
मॉल्स होकर थक गया
सन्नाटों में डूब
बीहड़ हो जाना चाहता हूँ।
गुलदानों में क्या रहना
बनावटी फूलों सा
इससे बेहतर
पतझड़ हो जाना चाहता हूँ।
बहुत कानून कायदे हैं
तेरे शहर में
तोड़ सब नियम
अक्खड़ हो जाना चाहता हूँ।
धन, दौलत, शोहरत
सब हो सिवा प्यार के,
छोड़ ऐसी जिंदगी
फक्कड़ हो जाना चाहता हूँ।।