अपने हिस्से का आसमान
अपने हिस्से का आसमान


खुला आसमान था सामने
और पंख थे परवाज़ भरने को तैयार
पर कैसे उड़ती
हाथों में जंजीरें थी सोने की
माँ, बहन, बेटी, बहू, और पत्नी होते - होते
मैं भूल ही गयी अपना अस्तित्व
पर ये बेड़ियाँ समाज से अधिक
मैंने ही बांधी थी अपने पैरों में
लेकिन अब मुझे तोड़ना
है हर जंजीर
और छूना है
अपने हिस्से का आसमान।