कभी तो उतर जमीन पर
कभी तो उतर जमीन पर


देख गौर से, दिलों में जख़्म बहुत है
तेरी इस कायनात में, गम बहुत है।
करता है तू न्याय सबके साथ ही
फिर क्यों तेरे राज में, सितम बहुत है?
सुना है महफ़िल सजी है तेरे यहां
मेरी बस्ती में आज, मातम बहुत है।
उतर कभी तख़्त से, जमीं पर आ
देख हकीकत, तुझे वहम बहुत है।
बन्दों से ही बन्दगी होती है, जान ले
तुझे अपनी खुदाई का, अहम बहुत है।