Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Sachin Kapoor

Abstract

3  

Sachin Kapoor

Abstract

कभी तो उतर जमीन पर

कभी तो उतर जमीन पर

1 min
365


देख गौर से, दिलों में जख़्म बहुत है  

तेरी इस कायनात में, गम बहुत है। 


करता है तू न्याय सबके साथ ही

फिर क्यों तेरे राज में, सितम बहुत है? 


सुना है महफ़िल सजी है तेरे यहां

मेरी बस्ती में आज, मातम बहुत है। 


उतर कभी तख़्त से, जमीं पर आ

देख हकीकत, तुझे वहम बहुत है। 


बन्दों से ही बन्दगी होती है, जान ले 

तुझे अपनी खुदाई का, अहम बहुत है। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract