उनको ख़बर नहीं
उनको ख़बर नहीं
शिक़ायत थी उन्हें हम से कि मीलों दूर बैठे हैं,
मिलना हो मग़र कैसे कि हुए मजबूर बैठे हैं।
कि दिन रात में पिस कर के हो कर चूर बैठे हैं,
कत्ल-ए-आम कर के भी साहब बे-कुसूर बैठे हैं।
यूँ भी दिन बिता कर आ गये उनको ख़बर नहीं,
थोड़ा हँस कर हँसा कर आ गये उनको ख़बर नहीं।
उनकी गलियों को छू कर आ गये उनको खबर नहीं,
हम उनके शहर हो कर आ गये उनको ख़बर नहीं।