वो जो पहले देखा न था
वो जो पहले देखा न था
इन आंखों से देख रहा हूं,
वो जो पहले देखा न था,
भरी दुपहरी में भी सूरज,
कभी सवेरे जैसा न था।
कितने पत्ते कितनी शाखें,
कितनी चिड़िया कितनी तितली,
इन गलियों में शोर शराबा,
पहले कभी ऐसा न था।
तनहा लगता था चांद रात का,
घिरा बादलों से रहता था,
उस सूने से बंजर आकाश में,
मेला कभी ऐसा न था।