तेरी जिंदगी से दूर
तेरी जिंदगी से दूर
मैं छूटती ही रही उसके दामन से
जितना गिरफ्त में करना चाह रहा था मुझे,
मैं बिखरती ही रही हवाओं में
जितना समेटना चाह रहा था मुझे,
और एक दिन हम दोनों के दरमियां
मीलों का फासला हो गया,
जिस्म मेरा था उसके पास कहीं
पर मन पता नहीं कहां दफन हो गया,
वो आएगा अगर मजार पर मेरी
यकीन करना मैं आंख मीच कर लेटी रहूंगी,
ना लूंगी कोई सिसकी ना आहें भरूंगी
मुर्दों कहां पुकारा करते हैं किसी को,
फिर तू एक और तोहमत लगाएगा
मेरे बेजान बेजुबान होने पर,
फिर कुछ और नीचे धसं जाऊंगी
तेरी जिंदगी में कभी ना आऊंगी!