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Amarjeet Kumar

Tragedy Crime Inspirational

4.5  

Amarjeet Kumar

Tragedy Crime Inspirational

स्त्री का प्रेम विवाह एक विष

स्त्री का प्रेम विवाह एक विष

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एक दिन एक स्त्री को भटकते देखा, 

तो मन में सोच कर उससे प्रश्न कर बैठे।

कौन हो तुम ओ सुकुमारी, 

क्यों गली-गली भटक रही हो।


क्या कसूर है तुम्हारा, 

क्या बात है बताओ जरा,

कोई तो होगा अपना तेरा।

कहाँ रहती थी तुम।

किस गांव की हो, 

तुम क्यों घर छोड़ चली हो, 

किसने तुमको छला है।


तब मेंरे प्रश्न को सुनकर उस स्त्री ने उतर दिया,

कविराज मुझे क्षमा करना ।

गरीब परिवार (माँ -बाप ) की बेटी हूँ, 

प्रेम रोग की रोगी हूँ।

रूप,रंग व सुंदरता ही मेंरी पहचान बताते है, 

प्रेम विवाह किया था मैंंने, 

कंगन-चुड़ी,बिंदी मुझे सुहागन बनाते है।


पिता के दुख को सुख व सुख को दुख समझी, 

जीवन 

के इस अग्निपथ पर प्रेमी के साथ चली थी मैं।

उसको मैंंने अपना माना, 

उसी के क्रोध की तपिश में जली थी मैं।


माता-पिता का साथ छोड़कर, 

प्रेमी के साथ विवाह की थी मैं।

पर वो निकला सौदागर (व्यापारी )

लगा दिया मेंरा भी मोल।


दौलत (धन) के लिए उसने 

मुझे बेच दिया मयखाने में, 

दुनिया के इस उपवन में 

एक छोटी सी कली थी मैं।

दौलत (धन ) के इस लोभी 

संसार में दौलत की भेंट चढ़ी थी मैं।


प्रेम की इस दुनिया में प्रेम विवाह व 

प्रेमी की भेंट चढ़ी थी मैं।

मयखाने से भागकर 

भिखारिन की जीवन जी रही हूँ मैं

स्त्री का कथन प्रेम विवाह एक विष।


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