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Mamta Singh Devaa

Tragedy

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Mamta Singh Devaa

Tragedy

' बातों के महिसासुर.....'

' बातों के महिसासुर.....'

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ये आयें हैं हमे बताने

अपने हिसाब से कपड़े पहनाने ,


जिंस फटी हो या सिली हो

दिमाग तो तुम्हारी सही हो ,


बाहों में स्लीव जुड़ी हो

तुम्हारे हिसाब से मुड़ी हो ,


कुर्ता कितना टाईट हो 

इस बात पर भी फाइट हो ,


साड़ी में घूंघट का भी नाप हो

तुम्हारी सोच से साड़ी का भी माप हो ,


कपड़ों के बहाने जिस्म तुम तौलते हो

और बिना ज़बान पे लगाम के बोलते हो ,


किसने तुम्हें हमारे कपड़ों को यंत्र दिया

लोकतंत्र ने तुम्हें क्या यही मंत्र दिया ?


इतनी पैनी निगाह खुद अपने आप पर रखते

तो ऐसे गिरे हुये शब्द अपने मुँह से ना कहते ?


क्यों बार - बार हमारी आत्मा को कोंचते हो

ऐसा ही तुम अपनों के लिए भी सोचते हो ?


हम तो हर बार अपनी सहनशीलता बढ़ा लेते हैं

तुम जैसों को अपनी निगाहों से गिरा देते हैं ,


हम अपनी औक़ात अच्छे से जानते हैं

वक्त आने पर तुम जैसों को भी दिखाते हैं ,


क्यों तुम हमेशा आग में घी पर घी डालते हो

क्यों तुम हमारे अंदर की काली को जगाते हो ?


शिव नही हो जो हमारे क्रोध को शांत कर दोगे

बातों के महिसासुर क्या तुम देवी को मात दोगे ?



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