मित्रत्व एक भाव
मित्रत्व एक भाव
माँ की ममता है मित्र गण में,
पिता का प्यार है।
करता हूँ नित्य दिन नमन तुम्हें मैं,
बहन-भाई सा स्नेह है।
अभिवादन स्वीकार करें मित्र गण,
जिनका है मेरे जीवन में शिक्षक सा मार्गदर्शन।
अमर हो जाए मित्रता जैसे सुदामा-कृष्ण,
उदाहरण प्रस्तुत करूँ मित्र भाव का नागलोक,
वसुधा व गगन में।
इस माया-रूपी विश्व में फँसना नहीं है हमें,
स्वार्थ की पराकाष्ठा से ऊपर उठकर
प्रेम और विश्वास कायम करना है हमें।
गम ना आए जीवन में,
सदैव तू खुश रहे खुश मैं।
सुख-दुख व गम में भी साथ रहें
जैसे दुर्योधन और कर्ण ,
मित्रता में तन, मन, धन व जीवन का हो भाव समर्पण।
मित्रत्व एक भाव हो अर्पण,
बुराई का करें जो तर्पण। ।