अपना नसीब
अपना नसीब
हर जंजीर तोड़ते चलो,
नदियों का रूख मोड़ते चलो ।
सितारों में दुनिया खोजना है,
इस धरती को छोड़ते चलो ।
और ऊंचा बढ़ते चलो,
बढ़ते चलो तुम बढ़ते चलो ।
मुश्किल कहां कुछ होता है,
बेकार में तू ऐसे रोता है ।
चल पगले हंस ले खिलखिलाकर।
काहे को दुख संजोता है ,
अपना नसीब खुद गढ़ते चलो।
बढ़ते चलो तुम बढ़ते चलो ,
कंटक वन और पर्वत को पार करते चलो।
और ऊंचा बढ़ते चलो,
लक्ष्य को प्राप्त करते चलो ।
भीड़ को चीरते चलो,
आंधी-तूफान में रोशनी की मशाल बनते चलो ।
बढ़ते चलो तुम बढ़ते चलो ।