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Rahul Desai

Tragedy

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Rahul Desai

Tragedy

बदनसीब

बदनसीब

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कितना बदनसीब है बचपन आज,

अनजान वास्तविक मित्रों और खेलों से,

वो खोया है एक काल्पनिक दुनिया में,

अपनी एक दुनिया बनाने को।


कितनी बदनसीब है जवानी आज,

अंजान वर्तमान समय की कीमत से,

वो भाग रहा है पैसों के मोह में,

अपना एक नया कल बनाने को !


कितना बदनसीब है बुढ़ापा आज,

सब जानते हुए भी कतराते है कुछ बोलने से,

वो उलझे हैं दो पीढ़ियों के सोच के फर्क मे,

वो हिम्मत ही नहीं कर पाते,

अपने परिवार को टूटने से बचाने को।


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