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Syeda Noorjahan

Tragedy

4  

Syeda Noorjahan

Tragedy

हक़ीक़त

हक़ीक़त

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 वक्त दर वक्त लिपट वक्त जाती है ज़ंजीर की तरह

मेरी हक़ीक़त पसंदी मुझे उड़ने नहीं देती


एक उम्र बीत गई आगे बढ़ने की कोशिश में

लोगों की फ़िक्र मंदी मुझे बढ़ने नहीं देती


साल गुजर गए नहीं गुज़रा तो एक लम्हा दर्द का

गुज़रते लम्हों की रफ्तार वक्त गुज़रने नहीं देती


न तरीका ही आया हमें न सलीक़ा जीने का

तेरी नुक्ताचीनी क्यों मुझे जीने न

हीं देती


अभी क़र्ज़दार हुं नमाज़े जनाज़ा कहां कुबूल होगी

मुहब्बतों की क़र्ज़दारी सुकून से मरने नहीं देती


पै दर पै वार कर करके भी कुछ बिगड़ न सका

बहार की उम्मीद फूलों को बिखरने नहीं देती


नेक बनने ख्वाहिश है मगर जाने क्यों

गुनाहों की आदत मुझे सुधरने नहीं देती


यह रस्मे दुनिया है घबराते क्यों हो रौशन

डुबाती है दुनिया जिसे फिर उभरने नहीं देती!


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