जिंदगी का मतलब
जिंदगी का मतलब


जिंदगी का मतलब समझ न पाया
जहर पीकर भी अमृत ढूंढ न पाया
इस ज़माने में भी कितना नादान हूं,
जल में रहकर प्यास बुझा न पाया
किसे इस जहान में, में अपना कहूँ,
किसे इस जहान में, में पराया कहूँ,
ठोकरें खाकर भी में संभल न पाया
जिंदगी का मतलब समझ न पाया
टूटा है, ये दिल बहुत बुरी तरह से,
जख़्म लगे है, जिंदगी पे नमक से
गैरों ने नहीं मुझे अपनों ने हराया
दिखावे के स्नेह को जान न पाया
रिश्तों की इन फिजूल महफिलों में,
पीठ पीछे मैंने सदा ही छुरा पाया
जिंदगी का मतलब समझ न पाया
हर शख्स मिला हमें स्वार्थी भाया
अच्छे-बुरे की पहचान कर न पाया
चिकनी-चुपड़ी बातें समझ न पाया
लोगों ने भ्
रम चढ़ाया इस कदर की,
मैं आईने का आईना तोड़ न पाया
जब समझा में जिंदगी का मतलब,
ख़ुद के हाथ लाठी का दामन पाया
चेहरे पे झुर्रियां, खुद को बेबस पाया
अपने ही खून ने मुझे बड़ा सताया
ख़ास पहले जिंदगी अर्थ समझता,
खुद को यूँ भीड़ में तन्हा न करता,
जिंदगी में पाई बस स्वार्थ की छाया
जिंदगी खोकर बस ये समझ पाया
जिंदगी रहते ले नाम बालाजी का,
वो ही भव पार करेंगे तेरा भाया
न हो ज़्यादा दुःखी सब नश्वर साया
बालाजी ही खत्म करते संसारी माया
वो ही पूर्ण परमात्मा का बस साया
बाकी सकल जग दुःखों का जाया
जपता रह बस बालाजी का नाम तू,
उनसे ही मिलेगा रोशनी का वाया
दिल से विजय