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ritesh deo

Romance Tragedy

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ritesh deo

Romance Tragedy

अस्तित्व

अस्तित्व

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किस बात का अधिकार रखती मैं

तुम्हारे साथ साथ चलने का..

तुम्हारे संग वक्त बिताने का,

तुम्हे बार बार अपना कहने का,

या तुम्हारे दिए उपहारों का

मेरे पास तो कहने के लिए

उलाहने भी नही थे समाज में,

मैं अधिकारों की बात कैसे कर

सकती थी?


मैं कैसे कहती..

 कई रात मैने तुम्हारी याद में

सिर्फ जाग कर काटी है,

कैसे बताती तुमसे मिलने आने से

पहले मैंने पहली बार झूठ बोला है,

क्या कहती तुम्हारा और मेरा रिश्ता

किसी भी व्यक्ति अग्नि या वक्त का साक्षी

नही था...


बोलो न!

मैं किन अधिकारों की बात करती ..

मैं जाने से पहले तुम्हारा हाथ पकड़ कर 

कैसे रोक सकती थी?

मैं किससे कहती तुम पर मेरा भी हक है..

मेरे समर्पण में भी कही तुम पर अधिकार

नही था,

तुम्हारे भाव में भी मेरा प्रथम अधिकार नही था,


ह्रदय के अधिकारों में कुछ नही मिलता, सिवाय

दुख और आंसुओ के... 

मेरे पास कोई अधिकार नहीं है जिनसे मैं

तुम्हे मांग सकूं ।।



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