आजकल प्रेम
आजकल प्रेम
आजकल प्रेम की गाड़ी
शिद्दत की पटरी से उतर गई है,
काया के मोह में बेइन्तहाँ चाहत
दरगुज़र होते सो गई है।
रममाण है जोड़े रंगरैलियों में
नशे में जवानियाँ बहक रही है,
नैनों से उतरकर पावक सी प्रीत
तन पर रेंग रही है।
उर में दबी सहमी-सहमी सी
चाहत सिसक रही है,
सीने के भीतर छुपी मोहब्बत
हवस बन नाच रही है।
प्यारी परिभाषा प्रेम की
तन की गर्मी में पिघल रही है,
स्पर्श की आगोश में खोते
अपना अस्तित्व खोज रही है।