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V. Aaradhyaa

Tragedy

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V. Aaradhyaa

Tragedy

दिल सीने के अंदर नहीं है

दिल सीने के अंदर नहीं है

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कभी पहले होता था समन्दर जो अब नहीं है!

दिल जिसे कहते थे,अब सीने के अन्दर नहीं है!


जो फ़क़ीर बेग़रज़ दिया करता था हमें दुआएँ!

वह हुआ करता था मस्त कलन्दर,अब नहीं है!


जो ना देखता सुनता न करता था कोई बुराई!

हुआ करता था गाँधीजी का बन्दर,अब नहीं है!


पाक मन में आ बसी दुनिया भर की वासनाएँ!

वो मन जो हुआ करता था मंदिर ,अब नहीं है!


अबके दौरां जंग के आसार हैं चारों ही तरफ !

जो हुआ करता था पोरस-सिकन्दर,अब नहीं है!


बाताओ तो अब कौन लिखे किस्से ज़िन्दगी के!

अब किसीके भावों की लिखावट सुन्दर नहीं है।


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