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Priya Srivastava

Romance Tragedy

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Priya Srivastava

Romance Tragedy

खुद की तलाश

खुद की तलाश

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अकेला ही पाती हूँ खुद को,

जब-जब अंतरंग साथी की जरूरत महसूस होती है।

कुछ यादों के बाद, कुछ ख्वाबों के साथ,

अकेली ज़िंदगी अब भी मुस्कुराती है।


बिना दोस्तों के, बिना साथियों के,

मगर अकेलापन भी अलग सा सोता है।

रात के अंधेरे में, बिस्तर के कोने में,

किसी की आत्मीय स्पर्श की तमन्ना होती है।


हर एक दिन, हर एक पल, लगता है समान,

क्या है ज़िंदगी के इस महकमे में रहने का अरमान।

सबके बीच में, कुछ खो दिया हुआ सा लगता है,

जो कभी सोचा नहीं था कि वह भी पाया सा लगता है ।"


फिर भी ज़िंदगी जारी है, अकेलापन से लड़ते हुए,

खुद को ढूंढते हुए, खुद को जानते हुए।

हँसते हुए कभी गमों में ढलते हुए,

ज़िंदगी के सफ़र को संभालते हुए।


अकेला ही पाती हूँ खुद को,

जब-जब अंतरंग साथी की जरूरत महसूस होती है।

लेकिन जब बसे हुए यादों की जद में,

मैं खुद को अकेलापन से आज़ाद महसूस करती हूँ।


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