ख्वाबों के सफ़र में
ख्वाबों के सफ़र में
कहने को मैं बयार थी,
पर शायद किसी की पुकार थी।
जैसे खुली आंखें नींद से मेरी,
टूटे ख्वाब और रह गई मैं अकेली।
पत्ते हिले और चिड़िया चहचहाई,
फिर अचानक मेरी आंख भर आई।
काश! हिस्सा होती मैं भी इन सब का,
पर पूरा नहीं होता सपना हर इक का।।
फिर भी ख्वाबों से नहीं मानना मुझे हार,
अब नए सपनों के लिए मैं हूँ सदा तैयार।
खुले आसमान के तले उड़ना चाहती हूँ मैं,
परिंदों की तरह स्वतंत्र बनना चाहती हूँ मैं।
जीवन के सफ़र में मुझे चुनौतियां मिलेंगी,
पर विजय के डगर में; मैं उड़ती रहूँगी।
अपने सपनों के लिए मैं लड़ती रहूँगी,
खुशियों की खोज में मैं निरंतर लगी रहूँगी।
अब नहीं है मैं अकेली, मेरे सपने हैं मेरे साथ,
मैं चलूँगी उनकी राह पर, बढ़ती रहूँगी उनके साथ।
जीवन के किसी भी मोड़ पर, मैं अपनी दृष्टि नहीं हटने दूंगी,
अपने सपनों को पूरा करने के लिए, मैं हमेशा जंग करती रहूंगी।।