अधर छापना चाहता हूँ
अधर छापना चाहता हूँ
तुम्हारे शब्दों की तीव्रता नहीं
शब्दों के भावों को छूना चाहता हूँ
तुम्हारे कोमल बदन को नहीं
बदन के अंदर रूह को छूना चाहता हूँ
तुम्हारे जख्मों की गहराई नहीं
जख्मों में उभरे दर्द को छूना चाहता हूँ
बसंत की मादक बयार हो तुम
तुम्हारी सुगंध में महकना चाहता हूँ
आषाढ़ की रिमझिम फुहार बनकर
तुम्हारे अधरों पर बहकना चाहता हूँ
कमसिन यौवन की मालकिन हो
तुम्हारी मुस्कान बनकर चहकना चाहता हूँ
तन्हा रात की धवल चांदनी हो तुम
तुम्हारे आंचल की छांव में सोना चाहता हूँ
जब निकला था तो अकेला था
सफर में तुम्हारा हमसफर होना चाहता हूँ
क्या पाया कभी हिसाब नहीं रक्खा
कुछ पाने के लिए सब कुछ खोना चाहता हूँ
तुम जैसी हो सच में लाजवाब हो
तुम्हारे लिए ख़ुद को बदलना चाहता हूँ
तन्हाईयाँ थक गई हैं चलते चलते
अब कुछ क़दम तुम्हारे साथ चलना चाहता हूँ
तुम खिलती हो महकती भोर बनकर
मैं तुम्हारा सूरज बनकर निकलना चाहता हूँ
आकाश की ऊंचाई नापने से पहले
तुम्हारे सब्र की गहराई मापना चाहता हूँ
जितने गुनाह हुए हैं तुमको पाने में
तुम्हारी वफ़ा के आंचल से ढांपना चाहता हूँ
घूंघट उठाए सजी रहना तुम दुल्हन-सी
तुम्हारे अधरों पर अधर छापना चाहता हूँ।