यादगार लम्हे फिर याद आए
यादगार लम्हे फिर याद आए
जरा याद करो आषाढ़ की वह नशीली शाम
पहली फुहार बनकर बरसे थे मेरे गालों पर
तुम्हारी जादुई छुअन से सिहर गया था बदन
सावन की सांसे अटकी थी रेशमी बालों पर
क्या याद है बसंत की पहली मादक बयार
महका था ये तन बदन तेरी नरम बांहों में
तुम्हारी आंखों में मचल रही थी बेचैनियाँ
मेरा दिल था खोया-खोया तुम्हारी आहों में
आए तुम मेरी ज़िन्दगी में नई बहार बनकर
दामन छुड़ाकर जाने का अब नाम मत लेना
जी भर पी लो इन नयनों से आज की रात
गैर के हाथों से कशिश का जाम मत लेना
अल्फाज़ कम हैं तेरी तारीफ में कुछ कहूँ
जब मुस्कुराते हो दिल को सुकून मिलता है
पहले तिनकों की तरह बिखरी थीं जिंदगी
तुमको देखकर जीने का नया जुनून मिलता है
हाथ थामा है धड़कती सांसें भी थाम लेना
मैं तुम्हारी पतंग और तुम इसकी डोर हो
दिन का उजाला हो रात का दमकता तारा
मेरी ज़िन्दगी की महकती तुम ताज़ी भोर हो
दिल के हर राज़ साझा किए है मैंने तुमसे
कहने को अब कुछ बाक़ी नहीं मेरे हमसफर
चलो उड़ चलें जहाँ कोई न हो सिवा हमारे
सिर्फ होगा अपना आशियाना मेरे हमसफ़र।