रक्खे हुए है हम
रक्खे हुए है हम
कल खास थे अब आम में रक्खे हुए हैं हम !
लो कौड़ियों के दाम में रक्खे हुए हैं हम !
घर से निकाल रक्खा है घर के चिराग ने
तख़्ती पे एक नाम में रक्खे हुए हैं हम
दफ़्तर के काम करते हुए दिन निकल गया
फिर इक थकी सी शाम में रक्खे हुए हैं हम
दहलीज़ पे ही करती है बातें तमाम वो
कुछ इस तरह लगाम में रक्खे हुए हैं हम
आया न कुछ भी हमको कभी इश्क़ के सिवा
बस यूँ ही काम वाम में रक्खे हुए हैं हम !
दो बोल प्यार के है मेरा मोल जान लो
कब से उसी ही दाम में रक्खे हुए हैं हम
होंठों पे आते आते जो थम जाता है तेरे
उस अनकहे से नाम में रक्खे हुए हैं हम
सुनने को उम्दा शायरी बढ़ती रहे तड़प
सो इस लिए निज़ाम में रक्खे हुए हैं हम
कर दो डिलीट मेरा वो नंबर भी फोन से
यूं बे-वजह इक नाम में रक्खे हुए हैं हम
करती है याद मुझ को वो बस सुबह इक दफा
तुलसी के जैसे बाम में रक्खे हुए है हम
ये ज़िक्र था तेरा मेरा बरसों से ही यहां
उल्फत के हर कलाम में रक्खे हुए है हम।
