फुटपाथ
फुटपाथ
रात को देखता हूं अक्सर
घर वापिस जाते हुए
बहुत से मांस के टुकड़े पड़े रहते हैं
सड़क के दोनों और
पर जब सुबह काम पे निकलता हूँ
तो सब गायब
जैसे रात निगल लेती हो
अजगर की तरह
और शाम होते ही
फिर उगल देती हो इनको
कैसे है ये मर के भी जिंदा
हो जाते है
या ज़िंदा रह रह के मरते है
समझ नही पाता हूं।
लेटे रहते है आसमाँ ओढ़े हुए
जमीन के चादर पे
ये मांस के टुकड़े।
यही है ये शायद हमारे लिए
हमको इनके होने या न होने से
कुछ फर्क नही होगा जानता हूं
जब कोई तेज़ आती गाड़ी
कुचल देती है इनको
तो थोड़ा उदास हो कर
गाड़ी वाले को कुछ गालियां निकाल
इनको भी निकाल देते है दिल से
मांस के टुकड़े है न
क्या फर्क पड़ता है हमको।
पर किसी को तो पड़ता होगा
क्या पता ?
