STORYMIRROR

Vishal Vaid

Others

4  

Vishal Vaid

Others

डर लगता है

डर लगता है

1 min
307

मुझको अब अपनों से डर लगता है

मकान दुश्मन का अब घर लगता है 


उसने चाहा था मुझको दिल से कभी

ये सोच बादलों में सर लगता है


तेरे सब अश्क है सागर से गहरे

लेकिन सागर कतरा भर लगता है


ज़रा सलीके से चलाओ तुम खंजर

कभी इधर तो कभी उधर लगता है


वो फिर से कर रही है इश्क की बातें

मुझे फिर दिल टूटने का डर लगता है


खुद से ही मुहब्बत ,खुद से ही शिकवा

ये बंदा तो आत्म निर्भर लगता है


भेजे है शेर दो मैसेज में उसने

मेरी शायरी का ये असर लगता है


कुछ बूंदे छूटी होगी मंथन में

सागर में नीला सा ज़ह्र लगता है


सब देख रहे है राह मसीहा की

और वनवास में है रघुवर, लगता है


जिस दर पे मिले भूखे को दो रोटी

बस वही उसे रब का दर लगता है


जब आती है आवाज़ परिंदो की

तब सच में शजर , शज़र लगता है।


Rate this content
Log in