अपना किरदार तराश रहा हूँ
अपना किरदार तराश रहा हूँ
कल नजरें चुराकर चुपके से निकली थी
आज देखा तो पगली की आंखें नम थी
आज भी ये गलतफहमी पाले बैठी है कि
यहाँ दीवानगी ज़्यादा आशिकी कम थी
कुसूर उसका नहीं अक्सर ऐसा होता है
हर पहले प्यार में दिल बेकरार होता है
शुरु शुरु में बेकाबू जज़्बात पिघलते हैं
धीरे धीरे फिर प्यार का इज़हार होता है
टूटे अरमान जब आसमान छू रहे थे
ख्वाहिशों के तारे ज़मीं पर उतरने लगे
खिड़की खोलकर करती मेरा इंतजार
मेरे ख़्याल उसके दिल से गुजरने लगे
छिप कर कनखीयों से उसका देखना
मेरी दीवानगी पर खड़ा सवाल कर गया
कहाँ से शुरु कहाँ ख़त्म होगी ये कहानी
प्रेम की दुनिया में बड़ा बवाल कर गया
नजरें मिलाने का सिलसिला चलता रहा
हर पल मिलने के नए बहाने बनाते रहे
हर शाम छत की मुंडेर पर उसका होना
दिल्लगी का हम भी अहसास कराते रहे
जाने कौन ये प्रेम कहानी लिख रहा था
मैं आज भी अपना किरदार तलाश रहा हूँ
शब्दों के सागर में डूबकर अर्थ हूँ खोजता
नए सिरे से अपना किरदार तराश रहा हूँ।

