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Sukhnandan Bindra

Abstract Fantasy

4.7  

Sukhnandan Bindra

Abstract Fantasy

अनकहे लम्हें

अनकहे लम्हें

1 min
353


ज़िन्दगी की किताब में हैं

एक साथ बंधे कुछ पन्ने


और...उन पन्नों में है....

सिमटी सी सकुचाई सी एक कहानी

और...इतिहास हो चुके

कुछ दर्द के लम्हें

गर्माये हुए एहसास के कुछ सर्द से लम्हें

कुछ नटखट, कुछ हमदर्द से

कुछ नरमाई में लिपटे, कुछ गर्द से लम्हें

कुछ छोटे.. .चंद बड़े

कुछ मुसाफ़िर बन के गुज़र गए

कुछ याद बन के खड़े लम्हें


हर लम्हा मुझे अज़ीज़ है

मेरे दिल के बहुत क़रीब है

इन लम्हों से जब मैं गुज़रती हूँ

इक साया सा संग चलता जाता है

बन के मेरी खुद की परछाई...

वो मुझमें कहीं ढलता जाता है


और ..सांझ ढले ....

जब...परछाई लंबी होने लगती है

वो साया...याद बनके

मेरे दिल में छुप जाता है ,

और...इक लम्हा बन कर

ज़िन्दगी की किताब में..

सिमटी सी सकुचाई सी..

अनकही कहानी के संग

जा के जुड़ जाता है


और मैं...

बड़े जतन के साथ

उन लम्हों को सहेजने लग जाती हूँ

कि कोई लम्हा छूट न जाए

लम्हों का ये बंधन टूट न जाये



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