ख्वाहिशें
ख्वाहिशें
हज़ारों ख्वाहिशें पलती है
हरेक जीवन के अंदर
रोज़ जीती रोज़ मरती हैं ऐसे
अनादि से अनंत की कोई यात्रा हो जैसे
मन की सीली मिट्टी पर डाले बिछौना
ख्वाहिशें सोई रहती हैं ऐसे
बुझी ठंडी राख के नीचे कोई
तेज़ चिंगारी दबी हो जैसे
न कोई हमसफ़र न हमराह फिर भी
खयालों में दूर तक निकल जाती हैं ऐसे
जैसे बियाबान जंगल में कोई
हिरणी कुलांचे भरती हो जैसे
हर ख्वाहिश रूहानी है
हरेक की अपनी ही कहानी है
कुछ मुकम्मल कु
छ अधूरी ऐसे
अधरों पर मुस्कान संग नैनों में सूनापन जैसे
जीवन है वहां ख्वाहिशें हों जहाँ
ख़्वाहिशों के बग़ैर ज़िंदगी कहाँ
बेरौनक ज़िंदगी में प्राण फूंकती हैं ऐसे
तपते रेगिस्तान में पानी का झरना जैसे
प्यारी-प्यारी, छोटी छोटी सी
ख्वाहिशें ज़रूर पालिये
जब भी वक़्त मिले पूरी के डालिये
ख्वाहिशें ज़िंदा होने की पहचान हैं
इन्हीं से जीवन में सुर लय तान है
जिस दिन ख्वाहिशें मुरझायेंगी
ज़िंदगी बेरंग बेरौनक बेनूर हो जाएगी