मुखौटे
मुखौटे
इस दुनिया का ये कैसा दस्तूर है
यहां हर कोई....
मुखौटा लगा कर जीनें को मजबूर है
हंसते मुस्काते अपना ग़म छुपाते मुखौटे
दूसरों के ग़म में आंसू बहाते मुखौटे
लापरवाह चेहरे पर ...
अदब और अच्छी आदत के मुखौटे
भेड़िये से चेहरे पर ...
इज्ज़त और इबादत के मुखौटे
आवाज़ के बाज़ार में चुप्पी के
तो नफ़रत की दुनिया में...
चाहत के मुखौटे
हर मुखौटा दिखावटी है
हर मुस्कान सजावटी है
ये मुखौटे मुझे बड़ा हैरान करते हैं
कभी-कभी बड़ा परेशान करतेहैं
हम इन्सान हैं हम धड़कते हैं
ये मुखौटे ...
हमारी धड़कन कहां पकड़ते हैं
अगर दिल खूबसूरत है ...
तो मुखौटे की क्या ज़रूरत है
बहुत कुछ कहना चाहती हूं आज
लेकिन ....
दब जाती है मेंरी आवाज़
अपनी दुनिया में आती हूं
अपनें दिल का राज़ बताती हूं
मैंने मन के अंदर....
इक गांव बसा रखा है
यहां कोई नहीं है एसा....
जिसनें मुखौटा लगा रखा है
यहां झूठ फ़रेब छल कपट नहीं है
मार-काट छीना झपट नहीं है
ये बड़ा अद्भुत सा संसार है
बांटने को यहां...ढेर सारा प्यार है
फिर भी मेरी आंख नम है
मेरे मन के इस गांव में...
बाशिंदे बड़े कम हैं
शर्त है न.....
इस गांव में बसनें की
मुझे रहती है तलाश...
हमेशा उसी की
जो दर्द पढ़नें का हुनरमंद हो
इन्सानियत का जो पाबंद हो
एक बार इस गांव में आओ तो सही
मुखौटों से दूरी बनाओ तो सही
एक अंजुरी भर जो प्यार लुटाओगे
तो यहीं के हो के रह जाओगे
यकीन मानों ....
मेंरे मन का ये गांव है बड़ा खूबसूरत
कभी नहीं होगी तुमको यहां
मुखौटे की ज़रूरत
एक बार जो मुखौटे की
आदत हट जाएगी
देखना ...
ये दुनिया बेहद खूबसूरत
बड़ी हसीन नज़र आएगी।