मैं अपने मन की क्यों न सुनूं
मैं अपने मन की क्यों न सुनूं
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मैं अपने मन की क्यों न सुनूं
मन की बातें ,मन के किस्से
कुछ पल गुफ्तगू करूं
मैं अपने मन की क्यों न सुनूं ……
अपनी ही दुनियां है इस मन की
जहाँ मन करता है खामोशी से बातें
धड़कन की देहरी पर ,मन की दस्तक
क्यों अनसुनी करूं
मैं अपने मन की क्यों न सुनूँ….
कह लूं कुछ मन की सुन लूं
एहसासात का ताना, जज़्बात का बाना
लपेट के साँसों की चरखी पर
कुछ ख़्वाब बुनूँ
मैं अपने मन की क्यों न सुनूं।
