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संजय असवाल

Fantasy

4.7  

संजय असवाल

Fantasy

जीवन यात्रा..!

जीवन यात्रा..!

1 min
343


इस जीवन

पड़ाव में 

हर पग की यात्रा में

सब साथ चलते हैं 

फिर क्यों धीरे धीरे 

सब पीछे छूटते रहे...?

कोई पहले

कोई आखिर में...!!

और ये मासूम मन 

जो डूबा है 

मोह में अपनों के.....!!

इसी उधेड़बुन चलता है 

कि निर्बाध यात्रा चलती रहे 

हम सभी का 

यूं साथ बना रहे 

आखिर वक्त में 

आखिर पहर की

अंतिम सांस तक ...!!

विचार बनते रहे

मिटते रहे 

पहाड़ बन टूटते रहे 

हृदय से निकली 

हर वेदना पर......!!

रात कसमसा कर 

आंसू बहाती रही.....!

चांद की 

शीत चांदनी भी 

उबासी ले

डबडबाती रही......!

तारे झुरमुट में 

बैठे बस ताकते रहे, 

जुगनुओं की 

उजली रोशनी को देखते रहे....!

ना उम्मीद की 

कोई आस 

जगने पाई है.....!

मन भी व्याकुल

धीरे धीरे बुझने लगा,

उम्मीदों पे कुहासा 

और गहराने लगा....!

ना किसी से प्रीत है

न निराशा कोई....!

साथ छोड़ती है 

मेरे मन में अंदर 

कहीं न कहीं 

बौखलाहट और

असहजता.....!

जीवन का 

अनुभव कटु स्वाद 

बन कसैला हो रहा है....!

कोई रंग भी 

उमंगों का आसपास

अब नहीं उभर रहा है......!

रंगहीन सा 

उभार 

मेरे चारों ओर के

हर वातावरण को 

नीरस

शब्दों से 

निराश कर रहा है......!

जीवन का उल्लास

मन का आत्म विश्वास 

क्या लौटाएगा

फिर से जिंदगी की आस को,

उबारेगा मुझे निराशा से........!

क्या ये जीवन यात्रा

खो देगी 

अपनी ओजस्विता

दिन पर दिन

यूं इसी गहरी सोच में.....!!!!



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