तुम बिन कौन सहारा
तुम बिन कौन सहारा
दीप जलाओ मन महकाओ
जगत करो आलोकित ।।
बुद्धि ज्ञान प्रकाशित कर दो
जीवों को दे दो वरदान ।।
हे प्रभु तुम ही करता धरता
सकल मनोरथ साधक ।।
दीप जलाओ मन महकाओ
जगत करो आलोकित ।।
मेरा मुझमें कुछ नहीं स्वामी
स्वार्थ भरा है ये खलु कामी ।।
मेरा मुझमें कुछ नहीं स्वामी
स्वार्थ भरा है ये खलु कामी ।।
इसकी नैया पार लगा दो
जीवन सफल बना दो स्वामी ।।
बुद्धि से औघड़ हूँ कृष्णा
तन से भी कमजोर ।।
दीप जलाओ मन महकाओ
जगत करो आलोकित ।।
बुद्धि ज्ञान प्रकाशित कर दो
जीवों को दे दो वरदान ।।
सीधी सीधी बात सिखाओ
दुविधा में मुझको मत उलझाओ ।।
बालक हूँ में बिलकुल अज्ञानी
तृप्त करो अब हे कृपा निधान ।।
दीप जलाओ मन महकाओ
जगत करो आलोकित ।।
बुद्धि ज्ञान प्रकाशित कर दो
जीवों को दो वरदान ।।