अहसास
अहसास
अहसास
उनके जाने से पता चला
कि जान कैसे जाती है
हर एक पल हर एक घड़ी
अहमियत उनकी , समझाती है ।
बहुत इन्तजार था कि
मनायेंगे जश्न -ऐ-आजादी
आती जाती हर सांस मगर
गुलामी की दास्ताँ कह जाती है ।
ना व्हाट्सएप का होश
ना फेसबुक की फिकर,
ना ही कोई चैटिंग
दिल को सुकून दिलाती है ।
जर्रे जर्रे में बिखरी थीं
खुशियों की सौगातें,
कभी गुलजार रही दीवारों से अब
सन्नाटे की सी आहटें आती हैं ।।
चलो अच्छा हुआ जो
गलतफहमियों का भूत उतर गया
कि रह लेंगे हम तो उनके बिना
पर क्या ये भी कोई जिन्दगी कहलाती है ?

