कविता
कविता
दूर, बहुत दूर चले जाना है
जीवन के उस मोड़ पर
किसी को न संग जाना है
दिन गए रातें गईं
कई पतझड़, बहार बन चले गए
इन सबसे बेखबर तेरी छवि पर
सिलवटें न डाल सके
फुरसत की घड़ियों में देखा
वही चेहरा,वही है सादगी
उम्र तमाम होने को है
इक याद तेरी है वही।
