नेकदिल शहंशाह
नेकदिल शहंशाह
था एक नेकदिल राजा
खुश रहती थी जिसकी प्रजा
उसका मित्र था एक बाज़
आना नहीं देता था राजा पर आँच
राजा के मन में विवाह का विचार आया
बाज़ के कहने पर उसने स्वयंवर रचाया
जो कन्या होगी सुशील और संस्कारी
उसको सौंपी जाएगी राजमहल की जिम्मेदारी
बारी-बारी सबको परीक्षा के लिए बुलवाया
राजा को कुछ भी किंतु समझ में ना आया
राजा ने फैसले का जिम्मा बाज़ पर छुड़वाया
इसमें कन्याओं को अपना अपमान नज़र आया
बस एक कन्या वहाँ खड़ी थी चुपचाप
उसके मुख से तेज़ झलक रहा था साफ
बाज़ ने पूछा तुमको नहीं है गुस्सा
कन्या बोली मुझे है स्वयं पर भरोसा
बाज़ को वह कन्या राजा के लिए भा गयी
हँसी-खुशी राजा की उससे शादी हो गयी।
