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Mukesh Parmar

Abstract Romance Fantasy

4  

Mukesh Parmar

Abstract Romance Fantasy

तुम कहीं

तुम कहीं

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तुम कहीं चाय तो नहींं, जो 

दिनबदिन "Hot" होते जा रहे हो,

तुम कही ख्वाब तो नहीं, जो सच होता जा रहा है !

तुम कही आयना तो नहीं, जो खूबसूरत दिखाए जा रहे हो !

तुम कही रात तो नहीं, जो मुझे दिन में तारे दिखाए जा रहे हो !


तुम कही प्यार तो नहीं, जो मुझे पूरी उम्र कैद रखने की सोचे जा रहे हो !

तुम कही दोस्त तो नहीं, जो मुझे गले से लगाए जा रहे हो !

तुम कही किसी के इन्तजार में तो नहीं, जो किसी की याद में खोए जा रहे हो !

तुम कही खुली क़िताब तो नहीं, जो तुम्हे सुकून से पढ़े जा रहे हो !


तुम कही मुसाफिर तो नहीं, जो किसी इंतजार किए जा रहे हो !

तुम कही सपना तो नहीं, जो हमे जगाए जा रहे हो !

तुम कही "वही " तो नहींं, जो हर वक्त याद आ रहे हो !


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