आंखें
आंखें
आंखों से तो नहीं देखा उसे,
हर ख्वाब में जो रहती है।
पलको से तो नहीं उठाया उसे,
हर दिन मुकमल करती है।
देखा है, उसे सोते जागते
हर शाम रंगीन करती है।
बड़े पैमाने पे दुनिया उसे
बदनाम करती है।
उस मंजर को कभी पाया नहीं,
फिर भी उसे परेशान करती।
ये दुनिया है, जनाब हर किसको
सलाम करती है।
वो खो जाता था उसे
पाने के लिए, फिर भी उसे हैरान करती है।
ये रास्ते भी कमाल करते है,
एक दूसरे के बिना भी बवाल करते है।
हर मंजर अधूरा रहता है,
फिर भी दुनिया उसे सवाल करती है।
इन आंखों से दुनिया कमाल दिखती है,
हर वक्त याद करके खुदको
भुला करती है।
