तुम्हारी खामोशी...!
तुम्हारी खामोशी...!
तुम्हारी खामोशी
अब चुभने लगी है,
दरों दीवारों से
टकराकर
ये कसक दिल में
एक टीस बन
उभरने लगी है ।
हर तरफ सन्नाटा पसरा है,
एक असीम शून्य
कंपन पैदा करने लगा है,
सांसे रुक रुककर
थमने लगी गई हैं,
मुझे अपने जीवित होने का
अहसास भी
इस खामोशी में
कहीं खोया खोया सा
लगने लगा है ।
हर तरफ काला
गहरा अंधकार
छाने लगा है,
जो डराने लगा है मुझे
फुफकारते सर्प की तरह,
और फैलने लगा है
मेरे जिस्म में
अमरबेल की तरह
इधर उधर।
ये दर्द
ये रिक्तिता
नशे की तरह
मेरे रगों में दौड़ने लगी है,
तुम बेशक खामोश हो
पर ये खामोशियां
इस दिल में
बेहद शोर
मचाने लगी है ।
तुम यूं चले गए
बिना कुछ बोले
दबे कदमों से,
तेरे पैरों के निशां
बस बाकी रह गए हैं,
और छोड़ गए मुझमें
मेरे लिए सिर्फ आंसू
जो तुम्हारी एक चुप्पी में
आज तक
जल रहे हैं।
