आश्रम
आश्रम
यहां ढेरों साल गुजर गए
गिनती उनकी हम भूल गए
उम्र कब तारीखों में उलझ गई
ये बात हमें अब याद नहीं
जब आश्रम में आए थे
अपनों से रिश्ता टूट गया
जो बेगाने लगते थे
उनसे ही नाता जोड़ लिया
अपनों का खून सफेद हुवा
उनसे अब कोई गिला नहीं
मिलने की उनसे ख्वाहिश थी
जिसकी कोई उम्मीद नहीं
जब रूहों में ही कशिश नहीं
मुलाकात उनसे बेमाने है
जिंदगी के रंग बदल गए
माज़ी को हम भूल गए
खुद को हमने संभाल लिए
आंखों के आंसू पोंछ लिए
गैरों ने जो हाथ बढ़ाए थे
दोनों हाथों से उनको थाम लिए
यहां सारे बंदे हम जैसे हैं
हम सबका यही बसेरा है
आश्रम में अपना कोई नहीं
पर कोई नहीं अकेला है
यहां खून के रिश्ते कोई नहीं
पर उन रिश्तों से ऊँचे हैं
अरसे से हम हंसे नहीं
यहां हंसाने वाला कोई नहीं
कुछ लम्हे संजोकर लाए थे
बस यही हमारी अमानत है
ये यादें जब दस्तक देती हैं
दिल खुशियों से भर जाता है
झुर्रियों से सूरत बदल गई
सीरत पर कोई शिकन नहीं
पहचान हमारी गलत सही
तख्ती पर नाम हमारा है
घर की दहलीज लांघी थी
वो सफर का पहला पत्थर था
आश्रम भी एक संगेमील है
यहां कुछ अरसे का डेरा है
जब कदम घर से बाहर रक्खे थे
अलविदा अपनों से कर आए थे
आगे का सफर तय करने को
गैरों के कंधे काफी हैं
