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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

बरसों की मित्रता के ताले

बरसों की मित्रता के ताले

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टूटे बरसों की मित्रता के ताले

इस हृदय ने रखे थे जो संभाले

लग गये उसपे भ्रम के जाले

दोस्ती के रिश्ते बरसों पुराने

टूट गये,स्वार्थ के पाकर दाने

हम देखते रह गए मित्र को

उसीने दिये हृदय को छाले

लूट गई वो अनमोल दौलत

जिनके थे हमें जीने के सहारे

दोस्ती के रिश्ते बरसों पुराने

टूटे गये,स्वार्थ के पाकर दाने

कभी जीवन मे रोना न आया,

मित्र तेरे धोखे न बड़ा रुलाया,

भरोसे के टूटे ताले वर्षों पुराने

विश्वास की चाबी टूट गई है,

खुद की परछाई रूठ गई है,

टूटे खुद के भीतर के आईने

लूटे दोस्ती के अद्भुत खजाने

दगे की दलदल में गुम हुए,

चेहरे बरसों के जाने-पहचाने

दोस्ती के रिश्ते बरसों पुराने

टूट गये पाकर मतलब दाने

इसलिये हर कोई न समझता ,

यहां पे सच्ची दोस्ती के मायने

दूर ही रख साखी स्वार्थी गाने

मतलबी दोस्त से मिलते ताने

जो मित्रता निभाना न जाने

उन्हें क्या बताना,मन के पैमाने

दूर रह तू दिल है,जिनके काले

वो बर्बाद करेंगे जीवन के पाने 

सच्चा दोस्त तो वो बालाजी है

बिना बताये तेरा हाल वो जाने

कर अटूट भरोसा तू उन पर,

वो देंगे तुझे अनमोल ख़ज़ाने

अधिकतर लोगों के दिल है,काले

वो क्या देंगे तुझे यहां निवाले?

जो पहने है,स्वार्थ के वस्त्र काले

यहां बालाजी ही है,सबके रखवाले

बाकी लोग तो स्वार्थ ही मन मे पाले

टूटे बरसों की मित्रता के ताले

स्वार्थी जन से न रख रिश्ते मतवाले

ये लोग तोड़ेंगे पल-पल मन के ताले

तू बना मित्र बस बालाजी को,

वो ही है,एकमात्र जगमग तारे!



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