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Abhishek Pandey

Tragedy

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Abhishek Pandey

Tragedy

स्त्री जाति की आह

स्त्री जाति की आह

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जिंदगी के हर मोड़ पर 

सताई गयी वो,

कभी दहेज तो 

कभी परायी बता कर 

जलाई गई वो।


वो स्त्री ही थी 

जिसने सर्वस्व अपना त्याग दिया, 

ताकि यह संसार चले

पर फिर भी 

कुल्टा और बदचलन ही

बताई गई वो।


अहिल्या को 

छला तुमने ही, 

पत्थर भी तुमने ही बनाया!

क्या दोष था 

उस अबला का 

कब भला ये जग जान पाया?


जिस पतिव्रता धर्म से 

झुका डाला वैदेही ने

उस अभिमानी रावण को,

उसकी पवित्रता पर 

सवाल खड़ा कर

उसे भेज दिया तुमने वन को।


देती रही 

वो अग्नि परीक्षा

जल कर भी वो शुद्ध रही,

तुम्हारे अत्याचारों से 

आहत होकर,अंततः 

पृथ्वीगोद में समा गई वो।


'द्रौपदी को 

जीवन भर कष्ट मिले' 

यह मांगने वाला 

'पुरुष समाज' का पिता ही था,

और रोक 

'कौमुदी गदा' श्रीकृष्ण का&n

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पुत्री धर्म निभा गयी वो।


उसने तुमको 

क्या कुछ नहीं दिया पर 

माँगा कभी कुछ नहीं,

अरे! तुमने तो उसके 

वस्त्र तक खींच डाले,

उसे भी नतमस्तक 

स्वीकार गयी वो!


यह गाथा नहीं है,

रामायण और महाभारत की

घर-घर की यह कहानी है,

वह द्वित सभा की द्रौपदी 

हो गयी आज पुरानी है।


अब तो छः माह की 

बच्चियों का भी 

होता यहाँ बलात्कार है,

मानवता को शर्मसार कर 

गयी बर्बता की कहानी वो।

 

बिलख रही अब अबलाएं 

अपनी लाज बचाने को,

कोटि दुःशाशन और दुर्योधन 

भरे पड़े हैं, कुदृष्टि गड़ाने को।


विलीन हो रही 

मानवता और सभ्यता

नीवं जिसकी तुमने डाली थी,

अब बहुत हुआ 

अब नष्ट करो, 

इस अधर्म की कहानी को।

हे सर्वेश्वर! 

हे रवि लोचन! 

एक बार फिर दुहरा दो, 

महाभारत की कहानी वो।



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