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Ram Naresh

Tragedy

4  

Ram Naresh

Tragedy

बदलता वक्त

बदलता वक्त

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सपनो में भी एक सपना था ,

जिसमे हर कोई अपना था ।

सुन्दर सी दुनिया दिखती थी ,

खुशियां रिश्तों में बसती थीं ।

तितली फूलों पर मंडराती थी,

कोयल संगीत सुनाती थी।

मां की लोरी सुन हर बच्चा सो जाता था ,

पिता के कंधे पर चढ़ कर

मेला देखने जाता था।

वो मा के हाथ की रोटी में

कैसा स्वाद अनोखा था,

वो हाथ के पंखे में क्या

मस्त हवा का झोंका था l

फिर वक्त अचानक रूठ गया,

जो सपना था वो टूट गया।

हर सख्स पराया दिखता है ,

जैसे किसी से ना कोई रिश्ता है ।

हर रिश्ता था जो घायल है ।

सम्बन्धों के बीच मोबाइल है ।

.........

रिश्तों ने रिश्तों को तोड़ दिया ,

फूलों को तितली ने छोड़ दिया ।

भ्रमरों का गुंजन हुआ मन्द ,

कमजोर पिता पुत्र संबद्ध ।

रोटी का स्वाद पड़ा फीका ,

बिक रहा खूब बर्गर पिज्जा ।

मां की लोरी सुने कौन भला,

जब से ये इयर फोन चला ।

कोयल का गाना छूट गया,

हाथ का पंखा टूट गया ।

डीजे टीवी कर रहा शोर,

ए सी कूलर का चल रहा दौर ।

सपना वो जाना पहचाना था ,

कुछ और नहीं वो एक बीता हुआ जमाना था ।


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