मानवता
मानवता


दीनन पर दया करो गिरिधर अब लाज तुम्हारे हाथों में,
मानवता की नैय्या डूब रही पतवार धरो निज हाथों में।
कोयल को कौवों ने घेरा है फैला चहुं ओर अंधेरा है ,
करुणा का सूरज अस्त हुआ हिंसा का हुआ सवेरा है ,
ये जो जातिवाद की खाई है बढ़ रही इसकी गहराई है,
पशुवों सा मानव देख देख मानवता भी अकुलाई है।
पंखुड़ी गुलाबों की कहती लगता है डर अब कांटों में।।
दीनन पर दया............
मानव ही मानव को नोच रहा देख गिद्ध ये सोच रहा,
हम तो हैं मुर्दों के भक्षक मानव जिंदों को ही नोच रहा।
अन्न वस्त्र जल महंगा बिकता रक्त मनुज का सस्ता है,
मार निहत्थे पार्थ पुत्र को अब फिर कौरव दल हंसता है,
मुरली त्यागो हे मुरलीधर अब धरो सुदर्शन हाथों में ।।
दीनन पर दया करो ..................