बचपन
बचपन
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वो बचपन भी कितना अच्छा था ,
हर शख्स यहां पर सच्चा था।
कितने सुंदर वो सपने थे ,
सब खेल खिलौने अपने थे ।
धन से भले फकीरी थी ,
पर दिल में बड़ी अमीरी थी।
खुद की बनाई सड़कों पर गाड़ियां दौड़ा करती थीं,
पानी के अंदर भी अपनी नावें चलती थीं।
वो चूरन वाले पैसों की भरी हुई संदुकें थीं,
हाथों में अपने भी बड़ी बड़ी बंदूके थीं ।
वक़्त बदला इंसान बदले बदल गई हर बात
बचपन तो बीत चला बस बाकी रह गए जज़्बात ।।